यूपी 2022 चुनावः किसान आंदोलन में राकेश टिकैत की भूमिका से चौधरी अजित सिंह की बढ़ी परेशानी, खतरे में सियासत
मुजफ्फरनगर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वेस्ट यूपी के समीकरणों में ऐसा बदलाव आया कि चौधरी अजित सिंह बिल्कुल हाशिए पर पहुंच गए। जाट समाज, जो एक वक्त इस परिवार की राजनीतिक ताकत हुआ करता था, वह बीजेपी में शिफ्ट हो गया। इसी वजह से वे लगातार दो चुनाव खुद हार चुके हैं, पार्टी को भी कोई सीट नहीं मिल पा रही है। मुख्यधारा में वापसी के लिए अजित सिंह ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया, लेकिन उसके जरिए भी उन्हें कामयाबी नहीं मिली। बस एक ही उम्मीद थी कि कभी तो बीजेपी कमजोर होगी। अब उन्हें ऐसा होता नजर आया लेकिन, अब इस उम्मीद पर राकेश टिकैत भारी पड़ते दिख रहे हैं। ...तो अजित सिंह की वापसी मुश्किल किसान आंदोलन के जरिए राकेश टिकैत का जिस तरह से उभार हुआ है, वह इन दिनों जाट समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हैं। अजित के लिए यह सबसे बड़ी परेशानी है। टिकैत के नेता बनकर उभरने से अजित सिंह की वापसी और मुश्किल हो जाएगी। अजित सिंह इस बात को बखूबी समझते हैं, यही वजह है कि किसान आंदोलन के बीच वे राकेश टिकैत से पार पाने की जुगत में हैं। दूसरे विकल्प तलाश रहे अजित सिंह मौजूदा समीकरणों में समाजवादी पार्टी के साथ रहने से अजित सिंह फिर से वेस्ट यूपी की पॉलिटिक्स में अपने को स्थापित नहीं कर पाएंगे। दूसरे विकल्पों की तलाश में अपने नजदीकी लोगों से विमर्श कर रहे हैं। 2022 में टिकैत को पार पाना आसान नहीं वैसे उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तब रहा था जब वे बीजेपी के साथ गठबंधन में थे, लेकिन अब बीजेपी को उनकी जरूरत नहीं रह गई है। यही अजित सिंह की सबसे बड़ी मुश्किल है। अब बदले हालात में 2022 के यूपी चुनाव में अगर बीजेपी को लगा कि टिकैत से पार पाना है, तो अजित सिंह उनकी मजबूरी होंगे।
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