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अब यूपी बोर्ड की किताबों में पढ़ाया जाएगा चौरी-चौरा कांड, सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिया निर्देश

लखनऊ यूपी बोर्ड के छात्रों को अब चौरी-चौरा कांड के शहीदों की वीरगाथाओं से रूबरू कराया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) के पाठ्यक्रम में चौरी चौरा की घटना को शामिल किया जा रहा है। सीएम योगी ने चौरी-चौरा के शताब्दी वर्ष में भव्य आयोजन का निर्देश दिया था। 5 फरवरी 1922 को हुआ था। यही वह हिंसक घटना है, जिसके बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत से भिड़ंत के बाद पुलिस चौकी में आग लगा दी थी। इसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए थे। इस घटना को चौरी चौरा जनआक्रोश के रूप में जाना जाता है। अब इसी घटना को यूपी बोर्ड में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। चौरी-चौरा स्थल का कराया जाएगा भ्रमण शताब्दी समारोह के तहत गोरखपुर मंडल के 400 से अधिक राजकीय और एडेड माध्यमिक स्कूलों के छात्रों को चौरी-चौरा स्थल का भ्रमण कराया जाएगा जहां स्कूली बच्चे इस घटना के शहीदों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। इसके अलावा स्टूडेंट्स के बीच कई प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जाएंगी। साल भर कराए जाएंगे कार्यक्रम 5 फरवरी को चौरी चौरा कांड के सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस ऐतिहासिक घटना को यादगार बनाने के लिए पूरे साल कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसमें लाइट ऐंड साउंड शो, बच्चों के लिए भी विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित करने के साथ ही चौरी चौरा कांड के बारे में भी विस्तार से बताया जाएगा। इसका मकसद आने वाली पीढ़ी अपने ऐतिहासिक घटनाओं से बेहतर तरीके से परिचित करना है। शताब्दी वर्ष पूरे होने के अवसर पर चौरी चौरा कांड स्टैम्प डाक टिकट भी जारी किया जाएगा। क्या है चौरी-चौरा कांड? 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा में किसानों के एक समूह ने एक पुलिस चौकी में आग लगा दी। इस हमले में एक थानेदार और 21 सिपाहियों की मौत हो गई। इस घटना को इतिहास में चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है। आंदोलन में जनता ने हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया था। इस वजह से गांधी जी नाराज हो गए। उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में घटना के विरोध में 'असहयोग आंदोलन' को वापस ले लिया। बता दें कि इस कांड के बाद गांधी जी सहित बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई। वहीं कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा भी सुनाई गई।


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