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हाईकोर्ट ने छात्रों की याचिका को खारिज किया, कहा- विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने रखें अपना पक्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों की उस याचिका को सतही और अधूरा बताते हुए खारिज कर दिया है, जिसमें विश्वविद्यालय के 19 जून के नोटिस व 23 जून को जारी परीक्षा स्कीम को निरस्त किए जाने व मास प्रमोशन की मांग की गई थी। हालांकि अदालत ने छात्रों को एक प्रत्यावेदन के जरिए अपनी बात लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने रखने छूट दी है। कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ही इस पर अंतिम निर्णय लेगा।

याचिका में यह भी कहा गया था कि विश्वविद्यालय के तीन प्रोफेसर व कुछ स्टाफ कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं, ऐसे में भारी मात्रा में कोरोना फैलने का भी खतरा है। याचिका में लॉकडाउन के समय चलाए गए ऑनलाइन क्लासेज पर भी सवाल उठाया गया था।

यह आदेश जस्टिस सौरभ लवानिया की एकल पीठ के जतिन कटियार व 22 अन्य छात्र-छात्राओं की ओर से दाखिल की गई याचिका काे खारिज करते हुए पारित किया। याचिका का विरोध करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के अधिवक्ता सवित्र वर्धन सिंह का तर्क था कि याचिका सुनने योग्य नहीं है। इसके साथ वकालतना में में केवल एक छात्र के हस्ताक्षर हैं जबकि याची 23 हैं। साथ ही यह भी कहा गया कि याचिका में उचित पक्षकार नहीं बनाए गए हैं और न ही उन शासनादेशों को ही चुनौती दी गई है जिनको आधार बनाकर विश्वविद्यालय ने स्कीम जारी किया है।

सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हांलाकि बाद में याचियों कोअपनी बात विश्वविद्यालय के सामने रखने के लिए प्रत्यावेदन देने की छूट दे दी है। याचिका का मुख्य आधार कोरोना महामारी को बनाया गया था। कहा गया कि विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक ने बिना महामारी की समस्या पर गौर किए व बिना यह देखे कि ट्रेनों का पूरी तरह संचालन नहीं होने के कारण तमाम छात्र परीक्षा में आने में असमर्थ होंगे। उक्त परीक्षा कार्यक्रम घोषित कर दिया। जो छात्र पीजी में रह रहे थे, उन्हें नई या पुरानी पीजी तालाशने में दिक्कत होगी व यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के छात्रावासों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन असम्भव है।

छात्रों ने अपनी याचिका में कई विश्वविद्यालयों का उदाहरण दिया था
छात्रों ने बीबीएयू लखनऊ, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी, शिबपुर, आईआईटी कानपुर और दिल्ली यूनिवर्सिटी का उदाहरण देते हुए मांग की कि उक्त विश्वविद्यालयों के भांति एलयू में भी छात्रों को मास प्रमोशन दिये जाने के विकल्प या ऑनलाइन परीक्षा इंटरनेट और लैपटॉप की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए कराए जाने पर विचार किया जाए।



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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ विश्वविद्यालय की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें परीक्षा रद्द करने की मांग की गई थी।


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