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आपदा से अवसर: अमरूदों के शहर में उगे सेब

आनंद राज, प्रयागराज 'हमारे अंदर आपदा को अवसर में बदलने की क्षमता है।' कोरोना से जंग में देश के हौसले की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह मंत्र दिया था। प्रयागराज के एक शख्स ने इसको गांठ बांध लिया और अब लॉकडाउन के बीच उन्होंने रोजगार का नया रास्ता खोज निकाला है। अमरूदों के लिए मशहूर प्रयागराज में वह कर रहे हैं। कोविड-19 के दौर में लोगों का रोजी-रोटी का जरिया छिन रहा है , रोजगार के लिए आदमी दर-दर भटकने को मजबूर है। परिवारों पर आर्थिक संकट का बोझ आ गया है। इसी कठिन घड़ी में रुद्र प्रताप सिंह ने नया रास्ता अख्तियार किया है । लॉकडाउन में रोजगार का नया रास्ता निकाला और इलाहाबादी अमरूद के शहर में उन्होंने सेब की खेती शुरू कर दी है। रुद्र प्रताप प्रयागराज के रामपुर जारी बाजार के रहने वाले हैं । परिवार में माता-पिता, पत्नी, दो बेटा और एक बेटी है। आर्थिक कमजोरी की वजह से निकलना पड़ा घर से बाहर रुद्र प्रताप सिंह के पिता किसान हैं। पिता ने 5 बीघा खेत दिया ताकि इसी खेत से परिवार का भरण-पोषण कर सकें। परिवार बहुत बड़ा था और खेती से काम नहीं चल रहा था। लिहाजा 2001 में वह अपना गांव छोड़कर पानीपत प्राइवेट जॉब करने चले गए। पहले तो बहुत दिन तक वहां पर मजदूरी की लेकिन कुछ दिन बाद उन्हें इसी कंपनी में ड्राइवर की नौकरी मिल गई । 2006 में कंपनी मुंबई शिफ्ट हो गई। वहीं पर उसी कंपनी में फिर से ड्राइवर की नौकरी करने लगे। उसके बाद कंपनी इनका ट्रांसफर दिल्ली कर रही थी ,लेकिन उन्होंने पुरानी जॉब को छोड़ कर मुंबई में ही कम पैसों में नई जगह ड्राइवर की नौकरी ढूंढ ली। इस दौरान खाली समय में जब गांव वापस आते थे तो वह अपनी खेती पर ध्यान देते थे। मुंबई से प्रयागराज 2019 में वापस आए तो 20 सेब के पौधे लगाकर फिर मुंबई वापस चले गए। सेब के पेड़ एक साल में ही फूल निकलने के बाद मीठे फल आने लगे। सेब का एक पेड़ तैयार होने में तीन साल लगता है और इनकी खेती हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में खास तौर से होती है। लेकिन रुद्र प्रताप सिंह के पौधे एक साल में ही तैयार होकर फल देने लगे। जनवरी 2020 में अपने पौधों को पेड़ के रूप में देखकर काफी खुश हुए और इन्होंने फिर से तकरीबन डेढ़ सौ पौधे मंगवा कर एक एकड़ खेत में लगवा दिया। कुछ दिन देखरेख कर फिर से यह मुंबई वापस चले गए लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही कोविड-19 की मार भारत में आ गई । इनकी कंपनी ने कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए घर में रहने की हिदायत दे दी। उसके बाद मार्च-अप्रैल की आधी तनख्वाह दी। लेकिन मई में इनको कंपनी की ओर से कोई वेतन नहीं मिला। इस वैश्विक महामारी को देखते हुए रुद्र प्रताप सिंह फिर से अपने गांव वापस आ गए और अपने खेत की देखरेख करने लगे । रुद्र अब मुंबई वापस नहीं जाएंगे और अपने रोजगार का जरिया इसी खेती से बनाने का मन बना लिया है। अब जो उनका पास बाकी चार बीघे जमीन है उसमें भी उन्होंने सेब उत्पादन का इरादा बना लिया है। जल्द ही सेब के पौधे लगाकर वह इलाके के किसानों को इसकी खेती के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। इस लॉकडाउन में इनको अपने खेत में ही रोजगार नजर आने लगा। अमरूद की बस्ती में सेब की खेती लहलहा रही है। यह कमाल रुद्र प्रताप सिंह ने सर्दी वाले इलाकों की जगह सामान्य मौसम वाले यूपी में करके दिखाया है। उड़ाते थे मजाक अब कर रहे तारीफ रुद्र प्रताप सिंह कहते हैं जब मैंने खेत में सेब के पौधे लगाए तो गांव के लोग मेरा मजाक उड़ाने लगे। मुझ पर ताने मारते और बोलते देखो सेब वाले आ गए। जब मेरे पौधे तैयार हो गए और फल देने लगे तो वही लोग मेरे खेत की ओर निहारते हैं और पीठ पीछे मेरी तारीफ करते हैं । प्रयागराज के इस गांव के रहने वाले लोग अब ये बात समझ गये हैं कि लॉकडाउन में सब के रोजगार का जरिया खत्म हो गया, लेकिन रुद्र प्रताप सिंह ने इसी खेती से नई राह खोल दी है। इसी लॉकडाउन में रुद्र प्रताप सिंह के छोटे बेटे की नौकरी चली गई और अब वह भी अपने पिता के सेब की पैदावार में हाथ बंटा रहे हैं।


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